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Updated: May 8, 2023

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आज बालकों में वृद्धि को समझते हैं। वास्तविकता में बालक जब वृद्धि करता है तो विकास में भी बढ़ोतरी होती है। इसलिए विकास और वृद्धि एक दूसरे के साथ आपसी तालमेल रखते हैं, लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वृद्धि और विकास का अर्थ एक ही है/ जब इनकी अवधारणा पर विचार करते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह दोनों एक दूसरे से भिन्न है।

विकास का अर्थ हम पहले ही हमारी यूट्यूब चैनल पर विकास के क्रम में वीडियो में समझ चुके हैं। अगर अभी तक आपने इसे नहीं देखा तो आप नीचे दिए गए लिंक से इसे देखें और विकास को पहले समझ ले

अगर वृद्धि को समझें तो हम इसे निम्न प्रकार समझ सकते हैं कि

शिशु के जन्म के बाद से उसकी कोशिकाओं की गुणात्मक वृद्धि होती है। इस विधि के परिणाम हमारे सामने दिखाई भी देते हैं सामान्यतया शिशु के लगातार अंगों के विकास को वृद्धि माना गया है। लेकिन यहां ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इन अंगों की कार्य क्षमता विकास में मापी जाती है।


वृद्धि के शब्द से आप यह भी समझ सकते हैं शिशु के परिमाणात्मक परिवर्तन ही वृद्धि कहलाते हैं जब बच्चे बड़े होते हैं और यह बड़े होने का क्रम लगातार चलता है उनके शरीर के अंगों में बढ़ोतरी होती जाती है। इन अगों में परिवर्तन होता जाता है, जैसे शरीर की आकृति का बदलना, आकार बढ़ना, वजन बढ़ना इत्यादि

इसलिए इस बात का भी इशारा मिलता है कि आयु बढ़ने के साथ-साथ आकार, लंबाई, भार, और इंटरनल अंगों में होने वाले परिवर्तनों को वृद्धि कहा गया है।


यह वृद्धि की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है जैसे बचपन से शरीर का बढ़ना, हाथों का बढ़ना, पैरों की लंबाई का बढ़ना, बालों की लंबाई का बढ़ना, बालों का गहरा होना, दांतो का आना, फिर दांतों का टूटना, फिर दोबारा दांत आना यह स्वाभाविक प्रक्रिया ही वृद्धि में शामिल है।


इस वृद्धि के आशय को बहुत से वैज्ञानिकों ने अपने मतों से परिभाषित किया है। जिसमें से कुछ मत निम्न प्रकार हैं----

हरबर्ट सोरेनसन ने वृद्धि को बड़ा और भारी होने से परिभाषित किया है जो परिवर्तनों की ओर संकेत होता है अर्थात यह वृद्धि परिवर्तन का सूचक है।

हरमुख के अनुसार विकास उसको मात्रात्मक परिवर्तन ही वृद्धि है

जबकि

इंग्लिश और इंग्लिश के मतानुसार विकास शरीर की व्यवस्था में लंबे समय तक होने वाले सतत परिवर्तन का एक अनुक्रम है

फ्रैंक के अनुसार वृद्धि का तात्पर्य भी कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि से होता है शरीर के किसी विशेष पक्ष में जो परिवर्तन देखने को मिलते हैं उसे वृद्धि कहा गया है।

वृद्धि गर्भ से ही शुरू हो जाती है और एक विशेष दिशा में होती रहती है। भ्रूण से लेकर प्रौढ़ावस्था तक जो भी परिणात्मक परिवर्तन होते हैं वे सभी वृद्धि में शामिल हैं। लेकिन वृद्धि निरंतरता के साथ-साथ एक आयु पर आकर रुक जाती है। वृद्धि की प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तन परिणात्मक होते हैं । इसलिए इसे भली-भांति देखकर भी इनका मापन किया जा सकता है कि वृद्धि हुई है या नहीं।

वृद्धि के साथ विकास का होना कोई जरूरी नहीं है कई बार वजन बढ़ने से कार्य क्षमता में वृद्धि नहीं होती है।

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