top of page

विकास के नियम / विकास के सिद्धांत (Principles of Development)- इसे पढ़ने के लिये 50 रु शुल्क का भुगतान करके सब्सक्राइब कर लें तभी आप हमारे DECE Course से सबंधित सभी ब्लॉग पढ़ पायेंगे।



प्रिय विद्यार्थी


अब तक हमने विकास और वृद्धि की परिभाषा और अन्तर को पढ़ा है आज हम विकास के सिद्धांत पर पढ़ेंगे विकास के सिद्धांत/ नियम कुछ निम्न प्रकार है जिनमे से एक नोटस मे एक या दो सिद्धांतों की चर्चा करेंगे।


(1) विकास की दिशा का सिद्धांत

(2) विकास की गति का सिद्धांत

(3) परस्पर संबंध का सिद्धांत

(4) विकास क्रम का सिद्धांत

(5) एकीकरण का सिद्धांत

(6) व्यक्तिगत विभिन्नताओं का सिद्धांत

(7) निरंतर विकास का सिद्धांत

(8) वंशानुक्रम एवं वातावरण की अंतः क्रिया का सिद्धांत


विकास के सिद्धांत निम्नलिखित हैं-


(1) विकास की दिशा का सिद्धांत


विकास की दिशा मुख्यतः शारीरिक और क्रियात्मक विकास में देखा जा सकता है-


(क) सिर से पैर की दिशा-


विकास हमेशा सिर से पैर की दिशा में होता है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि संरचना के रूप में सुधार सबसे पहले सिर वाले हिस्से में होता है। उसके बाद धड़ वाले हिस्से में यह सुधार होता है और अंत में जाकर टाँगों वाले भाग में यह सुधार होता है। यह सिद्धांत जन्म से पहले तथा जन्म के बाद, दोनों स्थिति में लागू होता है। आप कभी जन्म पूर्व भ्रूण विकास का अध्ययन करेंगे तब आपको ज्ञात होगा कि भ्रूण में सबसे पहले सिर वाला हिस्सा, उसके बाद धड़ और तदोपरांत टाँगें विकसित होती हैं।


वस्तुतः गर्भधारण के आठ सप्ताह पश्चात् भ्रूण की पूरी लंबाई का आधा हिस्सा सिर की लंबाई होती है। पूरी गर्भावस्था में अन्य अंगों की अपेक्षा सिर की वृद्धि सबसे तीव्र गति से होती है। लेकिन इसका यह अभिप्राय नहीं है कि शरीर के शेष हिस्सों का विकास साथ-साथ नहीं होता।


कहने का तात्पर्य है कि सिर अपेक्षाकृत अधिक तीव्र गति से विकसित होता है। विकास की दिशा के संदर्भ में यह बताना महत्त्वपूर्ण है कि जब शरीर का एक हिस्सा तीव्र गति से बढ़ रहा होता है तो उसके साथ-साथ शरीर के अन्य हिस्से भी विकसित तो होते हैं। परंतु उनके विकास की दर, तीव्र गति से विकसित होने वाले हिस्से की अपेक्षा धीमी होती है। अतः प्रसव-पूर्व काल में चूँकि सिर का हिस्सा तीव्रतम गति से विकसित हुआ था तो स्वाभाविक ही है कि जन्म के समय शरीर के अन्य हिस्सों की अपेक्षा यह ज्यादा विकसित होगा। जन्मोपरांत विकास का केंद्र शरीर के अन्य निचले हिस्सों की ओर स्थानांतरित हो जाता है। जन्म के पश्चात् धड़ की वृद्धि तीव्र गति से होती है, इसके पश्चात् बाँहों और टाँगों की वृद्धि की दर तीव्र होती है।



जन्म से परिपक्व होने तक शरीर के विभिन्न भागों के आकार में वृद्धि पर ध्यान दें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है। जन्म से परिपक्व होने तक सिर का आकार केवल दुगुना होता है, जबकि शरीर के निचले भागों को वयस्क आकार प्राप्त करने के लिए अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि की आवश्यकता होती है। वयस्क होने तक धड़ का हिस्सा लंबाई में तीन गुना, बाँहें एवं हाथ लंबाई में चार गुना और टाँगें एवं पैर लंबाई में पाँच गुना बढ़ते हैं। क्रियात्मक विकास भी सिर से पैर की दिशा में होता है। सिर वाले क्षेत्र की माँसपेशियाँ सबसे पहले नियंत्रित होती हैं जिसके फलस्वरूप आँखों और चेहरे की गतिविधियाँ नियंत्रित होती हैं। तत्पश्चात् गर्दन की माँसपेशियाँ नियंत्रित होती हैं, बाद में धड़ और बाजू और अंत में टाँगों की माँसपेशियों पर नियंत्रण हो पाता है।


इसी के परिणामस्वरूप बैठ पाने की योग्यता अर्जित करने से पूर्व बच्चे पहले सिर को टिकाना सीखते हैं और चलना सीख पाने से पहले बैठने योग्य हो जाते हैं।




(ख) शरीर के मध्य से बाहर की ओर-



इस दशा में विकास की प्रगति बहिर्गामी (अंदर से बाहर की ओर) होती है। चित्र में शरीर का केंद्रीय अक्ष दिखाया गया है। जो अंग और माँसपेशियाँ शरीर के अक्ष के नजदीक होते हैं वे पहले विकसित होते हैं और जो अक्ष से दूर होते हैं वे बाद में विकसित होते हैं।

जन्मपूर्व सिर, सुषुम्ना, हृदय और उधर, जो शरीर के मध्य में होते हैं, सहले विकसित होते हैं। भ्रूण की बाँहे व टाँगे जो कि अक्ष से दूर होती है, बाद में विकसित होती है और अँगुलियाँ च पंजे, जो बिल्कुल अंतिम छोर पर होते है, सबसे अंत में विकसित होते है। यह सिद्धांत क्रियात्मक समन्वय में भी प्रत्यक्ष देखा जा सकता है।


सबसे पहले बालिका कंधों की मांसपेशियों का प्रयोग करते हुए बाँहों को नियंत्रित रूप से हिला पाती है। ये माँसपेशियाँ अक्ष के पास होती हैं। धीरे-धीरे बालिका कोहनी की मांसपेशियों, तत्पश्चात् कलाई की और सबसे अंत में अंगुलियों की मांसपेशियों पर नियंत्रण कर पाती है। यदि हम शिशु को किसी वस्तु की ओर हाथ बढ़ाते हुए देखें तो हमें यह बात स्पष्ट हो जाएगी। तीन महीने की बालिका पास पड़ी वस्तु को लेने के लिए अपनी पूरी बाँह का प्रयोग करती है। जैसे-जैसे वह बड़ी होती है वह पास पड़ी वस्तुओं तक पहुँचने के लिए केवल कोहनी का प्रयोग करती है।


इसी प्रकार एक वस्तु उठाने के लिए बालिका पहले पूरे हाथ का प्रयोग करती है। वस्तुओं को केवल अँगुलियों से उठाना वह बाद में सीखती है। इससे स्पष्ट है कि बालिका अँगुलियों की माँसपेशियों (जो शरीर के सिरे पर होती हैं) के प्रयोग से पहले कंधों की माँसपेशियों का प्रयोग करती है (जो मध्य के पास होती हैं। इसी प्रकार बालिका पंजों पर नियंत्रण से पहले अपनी टाँगों की गतिविधियों पर नियंत्रण पाती है। इन उदाहरणों से मालूम होता है कि बालिका पहले शरीर की बड़ी माँसपेशियों (जैसे कि कंधे) में तालमेल कर पाती है क्योंकि वे मध्य के समीप है और इसके बाद ही छोटी गाँसपेशियों में तालमेल करती है जैसे अंगुलियों और पंजे) जो सिरे की ओर होते हैं।


शेष अगले भाग में :-






Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page