- Roodra Group Of Education
- Apr 12, 2023
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Updated: May 26, 2023
विकास के नियम / विकास के सिद्धांत (Principles of Development)- इसे पढ़ने के लिये 50 रु शुल्क का भुगतान करके सब्सक्राइब कर लें तभी आप हमारे DECE Course से सबंधित सभी ब्लॉग पढ़ पायेंगे।
विकास की गति का सिद्धांत-
यह सिद्धांत महान मनोवैज्ञानिक डग्लस एवं होलैंड के द्वारा प्रतिपादित किया गया था। इस सिद्धांत में इस तथ्य को माना गया कि बालक का विकास एक निरंतर प्रक्रिया है। परंतु विकास की गति बालक की अवस्था पर निर्भर करती है और हर अवस्था में अलग अलग होती है। विकास की इस गति के सिद्धांत में इस बात को समझाया गया कि शैशवावस्था में बालक का विकास तेजी से , बाल्यावस्था में बालक का विकास शैशवावस्था की तुलना मे कम तथा किशोरावस्था में बालक का विकास दोबारा तेजी से होने लग जाता है।
व्यक्तिगत विभिन्नताओं का सिद्धांत
बाल विकास के सिद्धांत में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का सिद्धांत मनोवैज्ञानिक हरलॉक ने दिया था। इस सिद्धांत के अनुसार सभी बालकों का विकास निरंतर होता रहता है परंतु किसी में भी समानता नहीं पाई जाती। उदाहरण के तौर पर यदि हम दो बच्चों के विकास को देखें तो दोनों में विकास जरूर होगा परंतु दोनों में विभिन्नता पाई जाएगी। इस सिद्धांत के अनुसार बालकों में शारीरिक,मानसिक ,सामाजिक,संवेगात्मक रूप से विभिन्नता पाई जाती है।
सभी बच्चों में विकास का एक विशिष्ट अनुक्रम होता है। उदाहरणतः क्रियात्मक विकास की अगर बात करें तो सभी बच्चे पहले करवट लेना, बैठना, घुटनों के बल चलना, चलना, दौड़न चढ़ना आदि क्रमशः सीखते प्रत्येक बच्चा इन अवस्थाओं से गुजरता है। बच्चे अलग अलग उम्र में अलग अलग अवस्था से निकलता रहता है।
एक बच्चा 10 महीने मे चलना प्रारंभ कर देता है और दूसरा बच्चा 12-13 महीने में चलना प्रारम्भ करता है। तो इससे हम यह मतलब नहीं लगा सकते अर्थात इसका यह आशय नहीं है कि विकास का अनुक्रम एक नहीं है गौर से समझे इस बात को कि विकास का अनुक्रम तो निश्चित ही होता है किंतु विकास की गति में वैयक्तिक भिन्नताएँ होती हैं।
इसीलिए विकास के एक विशेष चरण तक पहुँचने या एक विशेष क्षमता प्राप्त करने की उम्र में वैयक्तिक भिन्नताएँ होंगी। विकास में इन वैयक्तिक भिन्नताओं के कारण कुछ बच्चों को तो तीन वर्ष की उम्र में ही रंगों की पहचान हो जाती है और उनके नाम सीख लेते हैं जबकि कुछ बच्चे पाँच वर्ष की उम्र में यह सीखते है। ऐसा भी संभव है कि एक लड़के की वृद्धि तीव्र हो और वह बारह वर्ष की उम्र तक अपनी पूरी लंबाई तक पहुँच जाए जबकि एक अन्य बच्चे की वृद्धि धीमी हो और वह सोलह वर्ष की उम्र तक ही अपनी पूरी लंबाई प्राप्त कर पाए।
विकास की गति में व्यक्तिगत विभिन्नता का सिद्धांत लागू होता है आपव सभी ने देखा है कि लड़कों और लड़कियों के विकास की गति में भिन्नताएँ होती हैं। गर्भ में लड़के की तुलना मेंलड़की के कंकाल तंत्र में अधिक तेजी से वृद्धि होती है। इस कारण जन्म के समय बालिकाओं का कंकाल तंत्र बालकों की अपेक्षा अधिक विकसित होता है। लड़कियों में यौवनारंभ लड़कों से लगभग दो वर्ष पहले होताहै।
विकास क्रम का सिद्धांत
इस सिद्धांत का अर्थ है कि बालक का विकास व्यवस्थित और निश्चित क्रम से होता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने इसको सिद्ध कर दिया है कि बालक के शारीरिक, मानसिक, भाषा, सामाजिक, संवेगातमक आदि विकास अपने अपने निश्चित क्रम से होते है। चूंकि गामक और भाषा संबंधी विकास एक दूसरे से सह संबंधित हैं। अतः दोनो का विकास क्रम एक ही है। जैसे बालक जन्म से समय रोना जानता है लेकिन कुछ समय पश्चात ब, व, म आदि अक्षर बोलने लग जाता है तथा सातवें माह में बालक पा, मा, दा आदि ध्वनियों का प्रयोग करने लगता है।
विकास की गति एक जैसी ना होने तथा पर्याप्त व्यक्तिगत अंतर पाए जाने पर भी विकास क्रम में कुछ एकरूपता के दर्शन होते हैं। विकास की प्रक्रिया एक खास स्वरूप के अनुसार चलती है। शारीरिक दृष्टि यह सिर से पैर की ओर बढ़ती है जबकि मानसिक क्षेत्र में यह मूर्त से अमूर्त चिंतन की क्षमता में अभिवृद्धि के रूप में प्रकट होती है। इसी प्रकार विकास का क्रम केंद्र से प्रारंभ होता है फिर बाहरी विकास होता है और उसके साथ संपूर्ण विकास। उदाहरण के लिए पहले रीड की हड्डी का विकास होता है उसके बाद भुजाओं हाथ तथा हाथ की उंगलियों का तत्पश्चात इन सब का पूर्ण रूप से संयुक्त विकास होता है।
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