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Updated: Aug 2, 2024

वृद्धि और विकास में अन्तर -

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वृद्धि

विकास

​वृद्धि शब्द का प्रयोग केवल उन परिवर्तनों के लिये होता है जो परिणात्मक (Quantitative) हों जैसे बालक की उम्र के साथ-साथ आकार, सम्बाई, ऊँचाई और भार आदि में होने वाले परिवर्तन हैं।

जबकि विकास उन सभी परिवर्तनों (परिमाणात्मक तथा गुणात्मक) के लिये काम में लाया जाता है। जिसके कारण व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन में आने वाले परिवर्तनों के संकेत मिलते हैं।

वृद्धि शब्द एक तरह से संकुचित अर्थ में प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द है । यह सभी प्रकार के परिवर्तनों में से केवल परिमाणात्मक परिवर्तनों को व्यक्त करता है।

जबकि विकास शब्द अपने आप में विस्तृत अर्थ संजोये हुये है। वृद्धि इसी का ही एक भाग है। विकास में वृद्धि का स्वतः ही समावेश होता है क्योंकि इसे सभी प्रकार के परिवर्तनों को प्रकट करने के लिये प्रयुक्त किया जाता है।

वृद्धि की प्रक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जो एक विशेष आयु पर शारीरिक, मानसिक परिपक्वता (Maturity) ग्रहण करने के साथ-साथ समाप्त हो जाती है। अतः यह आजीवननहीं चलती।

जबकि विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलने वाली एक सतत प्रक्रिया (Continuous Process) है। यह जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती है। परिपक्वता के ग्रहण करने के साथ समाप्त नहीं हो जाती।

वृद्धि शब्द व्यक्ति के शरीर के किसी अंग जैसे हाथ, पैर तथा व्यवहार के किसी पक्ष जैसे मानसिक योग्यताओं मेंआये परिवर्तनों को प्रकट कर सकता है।

जबकि विकास शब्द किसी अंग विशेष अथवा व्यवहार के किसी एक पक्ष में होने वाले परिवर्तनों को नहीं बल्कि व्यक्तित्व में आने वाले सभी परिवर्तनों को संयुक्त रूप में व्यक्त करता है।

वृद्धि की प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तन चूंकि परिमाणात्मक होते हैं अतः उनका अच्छी तरह निरीक्षण भी किया जा सकता है और भली-भांति मापन भी। बालक के कद को बढ़ता हुआ आसानी से देखा जा सकता है और उसकी लम्बाई को मापा जा सकता है।

जबकि विकास के परिणामस्वरूप आये परिवर्तनों का न प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन किया जा सकता है और न ठीक प्रकार से मापन, क्योंकि इसमें परिमाणात्मक एवं गुणात्मक दोनों ही परिवर्तन घुले-मिले रहते हैं और इस प्रकार के संयुक्त परिवर्तनों को विशेष मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा ही मापा जा सकता है।

वृद्धि के विकास का होना आवश्यक नहीं है। उदाहरण के लिये मोटापा बढ़ जाने से भार में वृद्धि तो हो जाती है परन्तु इस वृद्धि से व्यक्ति की कार्य- क्षमता (Efficiency) में कोई अनुकूल परिवर्तन नहीं आता ।

जबकि विकास भी वृद्धि से जुड़ा नहीं है। कुछ बच्चे इस तरह के अवश्य देखेजा सकते हैं जिनमें शारीरिक वृद्धि की गति बहुत धीमी होती है वे आकार,लम्बाई और वजन में कुछ ज्यादा बढ़ोतरी नहीं कर पाते परन्तु उनके व्यक्तित्व का विकास होता है वे संवेगात्मक तथा सामाजिक रूप से परिपक्वता भी ग्रहण कर लेते हैं और उनमें पर्याप्त कार्य- क्षमता भी आ जाती है ।
















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